काशी
में देव दीपावली मनाने की परंपरा अति प्राचीन काल से सिर्फ पंचगंगा घाट पर
थी. देव दीपावली का वर्तमान स्वरूप 1989 में वजूद में आया जो आज बढ़ कर
महोत्सव का रूप ले चुका है. देव दीपावली आयोजन के सम्बन्ध में दो पौराणिक
मान्यताएं प्रचलित हैं. पहला यह कि काशी के पहले राजा दिवोदास ने अपने
राज्य में देवताओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाई थी. लेकिन कार्तिक मास में
पंचगंगा घाट पर स्नान के महात्म्य का लाभ लेने के लिए देवता छिप कर यहां
आते रहे. बाद में देवताओं ने राजा दिवोदास को मना लिया और खुशी में
दीपोत्सव हुआ. दूसरी कहानी के अनुसार त्रिपुर नामक राक्षस पर विजय के
पश्चात देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने सेनापति कार्तिकेय के साथ
शंकर की महाआरती की थी और नगर को दीपमालाओं से सजा कर विजय दिवस मनाया था.
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