ब्रह्मांड में धरती की हैसियत एक तिनके के बराबर भी नहीं है और प्रथ्बी में
इन्सान द्वारा बनायी गयी किसी भी बस्तु की औकात आसानी से समझी जा सकती है।
फिर भी आदमी है की उसका घमंड जाने का नाम नहीं लेता . यदि इन्सान इस बात
को अपने अन्दर उतार ले तो नाना प्रकार के कष्टों से मानव जाति का कल्याण और
हमारी धरा भी सुरक्षित रह सकती है।
हमने सब कुछ बाट दिया मेरे में और तेरे में
बक्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा है
नहीं
कल तलक था जो सुहाना कल बही विकराल हो
...
एक जमी बक्शी थी कुदरत ने हमको
यारो लेकिन
हमने सब कुछ बाट दिया मेरे में और तेरे में